नफरत भरे भाषणों यानी हेट स्पीच(hate speeches) के खिलाफ कार्रवाई नहीं होने पर सुप्रीम कोर्ट ने सख्त रुख अपनाया है। सुप्रीम कोर्ट ने इसे “बहुत परेशान करने वाला” बताते हुए कहा, “हम धर्म के नाम पर कहां आ पहुंचे हैं? यह 21वीं सदी है। हमें एक धर्मनिरपेक्ष समाज होना चाहिए, लेकिन आज नफरत का माहौल है। हमने ईश्वर को कितना छोटा कर दिया है। उसके नाम पर विवाद हो रहे हैं।” कोर्ट ने ऐसे मामलों में किसी शिकायत का इंतजार किए बिना खुद कार्रवाई करने को कहा है। सुप्रीम कोर्ट ने यह निर्देश दिल्ली, उत्तर प्रदेश और उत्तराखंड को दिया है। साथ ही चेतावनी दी कि प्रशासन की ओर से इसमें किसी भी तरह की देरी को गंभीरता से लिया जाएगा। यह कोर्ट की अवमानना (contempt) होगी। इसके लिएदोषी अधिकारियों के खिलाफ कड़ी कार्रवाई की जाएगी।
जस्टिस केएम जोसेफ और हृषिकेश रॉय की बेंच ने शुक्रवार को कोझीकोड (केरल) के निवासी शाहीन अब्दुल्ला की याचिका पर तीन राज्य सरकारों को नोटिस भी जारी किया। शीर्ष अदालत (Supreme Court) ने कहा कि राष्ट्र के धर्मनिरपेक्ष ताने-बाने को बनाए रखने के लिए नफरत फैलाने वाले भाषण देने वालों के खिलाफ सख्त कार्रवाई की जानी चाहिए।
शाहीन अब्दुल्ला ने 10 अक्टूबर को विहिप की दिल्ली इकाई और अन्य हिंदू संगठनों की विराट हिंदू सभा में दिए गए भाषणों और कुछ धर्म संसद कार्यक्रमों में मुसलमानों के खिलाफ नफरत भरे भाषणों के बाद कार्रवाई की मांग करने वाली अन्य याचिकाओं पर प्रकाश डाला। बेंच ने यह जानने की कोशिश की कि दिल्ली, यूपी और उत्तराखंड में नफरत भरे भाषणों पर क्या कार्रवाई की गई, जिसमें हाल ही में भाजपा नेता प्रवेश वर्मा ने किसी समुदाय का नाम लिए बिना “बायकाट” की अपील की थी।
सुप्रीम कोर्ट ने याचिका पर तीनों राज्यों को नोटिस भी जारी किया। कहा कि वे जवाब दाखिल कर बताएं कि याचिका में दिए गए नफरती भाषणों के मामले में उन्होंने क्या कार्रवाई की
बेंच ने कहा कि वे “यह सुनिश्चित करेंगे कि जब भी कोई भाषण या कोई कार्रवाई होती है, जिसमें आईपीसी की धारा 153ए, 153बी और 295ए और 505 जैसे अपराध होते हैं, तो कोई शिकायत न होने पर भी खुद मामले दर्ज (suo motu action) कर कार्रवाई की जाएगी।”आईपीसी (IPC) की धारा 153ए धर्म, जाति, जन्म स्थान, निवास, भाषा आदि के आधार पर विभिन्न समूहों के बीच शत्रुता (promoting enmity) को बढ़ावा देने और सद्भाव (harmony) बनाए रखने के लिए प्रतिकूल कार्य करने से संबंधित है। 153बी राष्ट्रीय एकता (imputations) को तोड़ने वाले कामों या बयानों के खिलाफ है, जबकि 295ए किसी भी वर्ग के धर्म या धार्मिक विश्वासों का अपमान करके उसकी धार्मिक भावनाओं को आहत (outrage religious feelings) करने के इरादे से जानबूझकर और दुर्भावनापूर्ण (deliberate and malicious) कृत्यों (acts) को संदर्भित (refers) करता है। धारा 505 सार्वजनिक शरारत के लिए योगदान देने वाले बयानों से संबंधित (statements conducing to public mischief) है।
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