नई दिल्ली—दिल्ली स्थित पर्यावरणीय शोध और एडवोकेसी संस्था टॉक्सिक्स लिंक ने न्यूयॉर्क मुख्यालय वाली वैश्विक संस्था एनवायरनमेंटल डिफेंस फंड के सहयोग से एक नई रिपोर्ट जारी की है, जिसमें चेतावनी दी गई है कि साबरमती नदी उन पाँच भारतीय नदियों में शामिल है जिनमें नॉनिलफिनॉल (NP) नामक रसायन की खतरनाक मात्रा पाई गई है। यह रसायन कैंसर, विशेषकर पुरुषों में प्रोस्टेट कैंसर और महिलाओं में ब्रेस्ट कैंसर का कारण बन सकता है।
रिपोर्ट के अनुसार, चेन्नई की कूम और अड्यार नदियाँ, लुधियाना की बुद्धा नाला और राजस्थान की बांदी नदी में भी एनपी की उच्च मात्रा पाई गई। नॉनिलफिनॉल को एंडोक्राइन डिस्टर्पिंग केमिकल (EDC) बताया गया है, जो हार्मोनल सिस्टम को नुकसान पहुंचाता है, स्त्री हार्मोन एस्ट्रोजन की नकल कर सकता है, और भ्रूण, बच्चों और बच्चों में विकास संबंधी विकृतियाँ पैदा कर सकता है।
साबरमती से लिए गए तीन तरह के नमूने
शोधकर्ताओं ने साबरमती नदी से सतही जल, तलछट और मिश्रित आइसोमर्स के नमूने दो प्रमुख क्षेत्रों से एकत्र किए। पहला क्षेत्र नदी के अपस्ट्रीम में स्थित साबरमती रिवरफ्रंट का 11.25 किलोमीटर का खंड है, जहाँ सूखी नदी को नर्मदा नहर के ज़रिए “स्वच्छ” जल से भरा जाता है। यह नहर गुजरात में स्थित सरदार सरोवर बाँध से आती है।
दूसरा क्षेत्र डाउनस्ट्रीम यानी वसना बैराज के बाद का है, जहाँ साबरमती अगले 64 किलोमीटर तक खंभात की खाड़ी की ओर बढ़ती है और इस हिस्से में मुख्यतः बिना उपचारित औद्योगिक अपशिष्ट मिलते हैं, विशेषकर वस्त्र उद्योगों से। पर्यावरण मित्रा जैसी स्थानीय संस्थाओं ने, प्रसिद्ध पर्यावरणविद् महेश पंड्या के नेतृत्व में, नमूनों के संग्रहण में सहयोग किया।
रिपोर्ट: “टॉक्सिक थ्रेड्स”
“Toxic Threads: Assessing Nonylphenol Contamination in Indian Textiles & the Environment” नामक 54 पृष्ठों की रिपोर्ट में बताया गया है कि नॉनिलफिनॉल एथॉक्सीलेट्स (NPEs), जो वस्त्र निर्माण में डिटर्जेंट और सर्फेक्टेंट के रूप में प्रयुक्त होते हैं, धोने के दौरान पर्यावरण में घुलते हैं और धीरे-धीरे एनपी में परिवर्तित हो जाते हैं। यह रसायन अत्यधिक विषाक्त, पर्यावरण में दीर्घकालिक टिकाऊ, और जैव संचयी होता है।
वस्त्र उत्पादों में खतरनाक मात्रा
रिपोर्ट के मुताबिक, भारत के 10 प्रमुख वस्त्र हब्स से 40 ब्रांडेड और लोकल उत्पाद एकत्र किए गए। इन उत्पादों में 8.7 से 957 mg/kg तक NPE पाया गया, जबकि यूरोपीय संघ की सीमा 100 mg/kg है। 15 में से 13 उत्पाद इस सीमा से अधिक पाए गए, और सबसे ज़्यादा 957 mg/kg NPE महिलाओं के होजियरी अंडरवियर में मिला। 10 उत्पाद अंडरवियर थे, जिनमें पुरुष और महिला दोनों के उत्पाद शामिल हैं। चौंकाने वाली बात यह रही कि 60% बच्चों के उत्पादों में भी NPE पाया गया।
नदियों में प्रदूषण का स्तर
देशभर के वस्त्र उद्योगों वाले क्षेत्रों से 33 जल नमूने लिए गए। रिपोर्ट के अनुसार, कूम (चेन्नई), अड्यार (चेन्नई), बुद्धा नाला (लुधियाना), बांदी (राजस्थान), और साबरमती (अहमदाबाद) नदियों में एनपी की पुष्टि हुई।
इनमें सबसे अधिक एनपी कूम नदी में 70 µg/L, अड्यार में 60 µg/L और बांदी में 40 µg/L पाया गया। साबरमती में सतही जल में भले ही केवल 7.9 µg/L पाया गया हो, लेकिन इसकी तलछट में 360 µg/kg और मिश्रित आइसोमर्स में 810 µg/kg एनपी था, जो चिंताजनक स्तर है। बुद्धा नाला में भी यही प्रवृत्ति देखी गई।
(नोट: 1 माइक्रोग्राम (µg) = 0.000001 ग्राम होता है, और µg/L का मतलब है प्रति लीटर जल में माइक्रोग्राम रसायन की मात्रा।)
नीतिगत शून्यता और वैश्विक व्यापार में खतरा
रिपोर्ट में कहा गया है कि डाउनस्ट्रीम क्षेत्रों में एनपी की उपस्थिति, जबकि अपस्ट्रीम में इसकी अनुपस्थिति, इस बात की ओर इशारा करती है कि इसका स्रोत वस्त्र उद्योग ही है। जहां यूरोपीय संघ, जापान, चीन, अमेरिका और दक्षिण कोरिया जैसे देश पहले से ही इस रसायन के उपयोग पर प्रतिबंध लगा चुके हैं, वहीं भारत अब भी पीछे है।
संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण कार्यक्रम (UNEP) ने भी एनपी को वैश्विक चिंता का विषय घोषित किया है। कनाडा की पर्यावरण परिषद ने मीठे जल में एनपी की अधिकतम सीमा 1.0 µg/L निर्धारित की है, लेकिन भारत में इससे कहीं ज़्यादा मात्रा पाई जा रही है।
रिपोर्ट चेतावनी देती है कि यदि भारत ने इस दिशा में कठोर कदम नहीं उठाए, तो हमारे वस्त्र उत्पाद अंतरराष्ट्रीय व्यापार में अड़चन झेल सकते हैं। यह भारत के वस्त्र उद्योग की प्रतिस्पर्धात्मकता और उसकी सततता व जिम्मेदारी की छवि को भी प्रभावित करेगा।
नोट- राजीव शाह द्वारा लिखित उक्त रिपोर्ट मूल रूप से Counterview पोर्टल पर प्रकाशित किया गया है.